सांसें बहुएं एक सरीखी
औरत होकर भी औरत का ,साथ निभाना ये ना सीखी
सारी सासें एक सरीखी, सारी बहुएं एक सरीखी
चाहे मीठी बात बना कर ,बातें करती हो शक्कर सी
पर जब भी मौका मिलता है ,आपस में देती टक्कर सी
हरी ,लाल हो चाहे काली , हर मिरची होती है तीखी
सारी सांसें एक सरीखी ,सारी बहुएं एक सरीखी
माँ सोचे बेटा बेगाना हुआ , हुई शादी उस पल से
बहू सोचती कैसा पति है ,बंधा रहे माँ के आंचल से
ऐसी ही तो तू तू,मै मै ,होती हर घर में है दिखी
सारी सांसें एक सरीखी,सारी बहुएं एक सरीखी
चाहे सास ,इजाजत के बिन,उसकी हिले न कोई पत्ता
बहू चाहे ,हो जाए रिटायर ,सास ,सौंप कर घर की सत्ता
बंद हो जाए टोका टाकी , ताने देना , बातें तीखी
सारी सांसें एक सरीखी , सारी बहुएं एक सरीखी
उसको,खुद को,नहीं बहू की ,जो जो बातें कभी सुहाती
उल्टा सीधा पाठ पढ़ा कर ,बेटी को वो ही सिखलाती
इस चक्कर में ,दोनों रहती,इक दूजे से कटी कटी सी
सारी सांसें एक सरीखी ,सारी बहुएँ एक सरीखी
वो भी तो थी बहू एक दिन ,उसने भी सांसें झेली है
साँसों की बॉलिंग के आगे ,बेटिंग कर, पाली खेली है
'स्पिन'और' फास्ट' थी बॉलिंग,फिर भी है मैदान पर टिकी
सारी सांसें एक सरीखी ,सारी बहुएं एक सरीखी
बहू दूध है ताज़ा ताज़ा ,सास पुराना जमा दही है
करे न तारीफ़ ,कोई किसी की ,उल्टी गंगा कभी बही है
माँ बीबी के बीच फजीहत ,होती है बेचारे पति की
सारी सांसें एक सरीखी ,सारी बहुएं एक सरीखी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
औरत होकर भी औरत का ,साथ निभाना ये ना सीखी
सारी सासें एक सरीखी, सारी बहुएं एक सरीखी
चाहे मीठी बात बना कर ,बातें करती हो शक्कर सी
पर जब भी मौका मिलता है ,आपस में देती टक्कर सी
हरी ,लाल हो चाहे काली , हर मिरची होती है तीखी
सारी सांसें एक सरीखी ,सारी बहुएं एक सरीखी
माँ सोचे बेटा बेगाना हुआ , हुई शादी उस पल से
बहू सोचती कैसा पति है ,बंधा रहे माँ के आंचल से
ऐसी ही तो तू तू,मै मै ,होती हर घर में है दिखी
सारी सांसें एक सरीखी,सारी बहुएं एक सरीखी
चाहे सास ,इजाजत के बिन,उसकी हिले न कोई पत्ता
बहू चाहे ,हो जाए रिटायर ,सास ,सौंप कर घर की सत्ता
बंद हो जाए टोका टाकी , ताने देना , बातें तीखी
सारी सांसें एक सरीखी , सारी बहुएं एक सरीखी
उसको,खुद को,नहीं बहू की ,जो जो बातें कभी सुहाती
उल्टा सीधा पाठ पढ़ा कर ,बेटी को वो ही सिखलाती
इस चक्कर में ,दोनों रहती,इक दूजे से कटी कटी सी
सारी सांसें एक सरीखी ,सारी बहुएँ एक सरीखी
वो भी तो थी बहू एक दिन ,उसने भी सांसें झेली है
साँसों की बॉलिंग के आगे ,बेटिंग कर, पाली खेली है
'स्पिन'और' फास्ट' थी बॉलिंग,फिर भी है मैदान पर टिकी
सारी सांसें एक सरीखी ,सारी बहुएं एक सरीखी
बहू दूध है ताज़ा ताज़ा ,सास पुराना जमा दही है
करे न तारीफ़ ,कोई किसी की ,उल्टी गंगा कभी बही है
माँ बीबी के बीच फजीहत ,होती है बेचारे पति की
सारी सांसें एक सरीखी ,सारी बहुएं एक सरीखी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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