रजतकेशी सुंदरी
रजतकेशी सुंदरी तुम
अभी भी हो मदभरी तुम
स्वर्ग से आई उतर कर ,
लगती हो कोई परी तुम
मृदुल तन,कोमलांगना हो
प्यार का तरुवर घना हो
है वही लावण्य तुम में ,
प्रिये तुम चिरयौवना हो
अधर अब भी है रसीले
और नयन अब भी नशीले
क्या हुआ ,तन की कसावट ,
घटी ,है कुछ अंग ढीले
है वही उत्साह मन में
चाव वो ही ,चाह मन में
वही चंचलता ,चपलता ,
वही ऊष्मा ,दाह तुम में
नाज़ और नखरे वही है
अदायें कायम रही है
खिल गयी अब फूल बन कर ,
चुभन कलियों की नहीं है
भाव मन के जान जाती
अब भी ,ना कर ,मान जाती
उम्र को दी मात तुमने ,
मर्म को पहचान जाती
बुरे अच्छे का पता है
आ गयी परिपक्वता है
त्याग की और समर्पण की ,
भावना मन में सदा है
नित्य नूतन और नयी हो
हो गयी ममतामयी हो
रजतकेशी सुंदरी तुम ,
स्वर्णहृदया बन गयी हो
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
रजतकेशी सुंदरी तुम
अभी भी हो मदभरी तुम
स्वर्ग से आई उतर कर ,
लगती हो कोई परी तुम
मृदुल तन,कोमलांगना हो
प्यार का तरुवर घना हो
है वही लावण्य तुम में ,
प्रिये तुम चिरयौवना हो
अधर अब भी है रसीले
और नयन अब भी नशीले
क्या हुआ ,तन की कसावट ,
घटी ,है कुछ अंग ढीले
है वही उत्साह मन में
चाव वो ही ,चाह मन में
वही चंचलता ,चपलता ,
वही ऊष्मा ,दाह तुम में
नाज़ और नखरे वही है
अदायें कायम रही है
खिल गयी अब फूल बन कर ,
चुभन कलियों की नहीं है
भाव मन के जान जाती
अब भी ,ना कर ,मान जाती
उम्र को दी मात तुमने ,
मर्म को पहचान जाती
बुरे अच्छे का पता है
आ गयी परिपक्वता है
त्याग की और समर्पण की ,
भावना मन में सदा है
नित्य नूतन और नयी हो
हो गयी ममतामयी हो
रजतकेशी सुंदरी तुम ,
स्वर्णहृदया बन गयी हो
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
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