Thursday, December 31, 2020

स्वर्ग में न्यू ईयर पार्टी

कोरोना की बंदिश मारे ,हम सारे 'इन डोर 'हैं
मगर स्वर्ग में नये वर्ष  की दावत का अब दौर है
जब से महाशय धर्मपाल जी ,हुए स्वर्ग के वासी है
एम डी एच मसालों की वहां रौनक अच्छी खासी है
सभी सब्जियों में खुशबू और स्वाद नया अब आता है
चाट मसाला ,रम्भा और उर्वशी मन ललचाता है

घोटू 

Wednesday, December 30, 2020

वो रविवार

जवानी में ,
जब मन में एक ही धुन थी सवार
इतना बढ़ाऊं अपना कारोबार ,
कि अपने परिवार को दूँ संवार
इसलिये सोमवार से शनिवार ,
सिर्फ व्यापार ही व्यापार
पर हफ्ते में सिर्फ एक बार
जब आता था रविवार
तो मेरे संग होता था पूरा परिवार
जिनके साथ वक़्त बिताकर ,
नहीं रहता था ख़ुशी का पारावार
किन्तु अब बढ़ती हुई उमर में ,
जब मैं हूँ  बेकार
बच्चे संभालते है कारोबार
हर दिन छुट्टी है ,हर वार है रविवार
पर बिखर गया है परिवार
बच्चों ने बसा लिया है अपना अपना घर
अब मैं और मेरी पत्नी है केवल
तब याद आते है बार बार
वो रविवार
जब मस्ती में साथ रहता था सारा परिवार

घोटू 
आया सन इक्कीस रे

मन तड़फाकर ,हमे सताकर ,गया बीत सन बीस रे
अब है मन में चाह ,नया उत्साह ,लाये इक्कीस  रे

कोरोना ने कहर मचाया ,कितनो के ही प्राण हरे
नौ महिने से अधिक बिताये ,घर में घुस कर ,डरे डरे
दशहत मारे ,हम बेचारे ,सब इतने मजबूर रहे
बना दूरियां ,अपनों से ही ,उनसे दो गज ,दूर रहे
मुंह पर पट्टी बंधी ,कभी ना हटी ,रही मन खीस रे
अब है मन में चाह ,नया उत्साह ,लाये इक्कीस रे

हुआ प्रकृती का कोप ,बढ़ गए रोग आपदायें आई
आये कहीं भूकंप ,कहीं तूफ़ान ,बाढ़ भी दुखदायी
सीमाओं पर सभी पडोसी देश ,मचा आतंक रहे
बंद रहे बाज़ार ,लोग कुछ ,बेकारी से तंग रहे
खस्ता हुई व्यवस्था ,मन में ,सबके उठती टीस रे
सबके मन में चाह,नया उत्साह, लाये इक्कीस रे  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
२०२० का साल

कितनो की बज गयी ढपलियाँ,नहीं रहा सुरताल
कितने ही बीमार हो गए ,कई हुए बदहाल
दुनिया को आतंकित करने ,चली चीन ने चाल
सबके मन में टीस दे गया ,बीस बीस का साल

कोरोना ने कहर मचाया ,पड़े कई बीमार
शहर शहर तालाबंदी थी ,बन्द हुआ व्यापार
लोगों ने दूरियां बनाली ,मुंह पर पट्टी डाल
सबके मन में टीस दे गया ,बीस बीस का साल

बंद फैक्टरी ,कामकाज सब ,लोग हुए बेकार
किया गाँव की ओर पलायन ,होकर के लाचार
मीलों पैदल चले बिचारे ,परेशान ,बदहाल
सबके मन में टीस  दे गया ,बीस बीस का साल

बंद होगये मंदिर ,मस्जिद ,सभी धर्म स्थान  
कोरोना डर ,गर्भगृहों में, छुप बैठे भगवान
अस्तव्यस्त सब ,चली वक़्त ने ऐसी उलटीचाल
सबके मन में टीस दे गया ,बीसबीस का साल

अब आया इक्कीस करेगा,हम सबका उपचार
आशा है सबको 'किस 'देकर ,फैलाएगा प्यार
यही प्रार्थना है ईश्वर से ,सभी रहे खुशहाल
सबके मन में टीस दे गया ,बीसबीस का साल

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

Monday, December 28, 2020

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Sunday, December 27, 2020

बेचारे गरीब किसान

बेचारे गरीब किसान
अपना सब सामान
ट्रालियों में लाद  कर लाये  है
दिल्ली में आंदोलन करने आये है
उनके तथाकथित शुभचिंतक नेता ,
उन्हें भटकाने में लगे है
अपनी लूटी हुई नेतागिरी की दूकान ,
फिर से चमकाने में लगे है
इन्ही की बातों से  बरगलाये ,
बिचारे किसान जिद पर अड़े है
सर्दी में सड़कों पर खुल्ले में पड़े है
कोई इन्हे सब सुविधा मुहैया करवा रहा है
सर्दी है तो कम्बल बंटवा रहा है
काजू किशमिश लूट रही है
बादाम घुट रही है
लड्डू है ,जलेबियाँ है
दिन भर चाय की चुस्कियां है
खाने के लिए लंगर चल रहे है
मशीनों में कपडे धुल  रहे है
पैर दबाने के लिये मशीने मंगाई है
फ्री में हजामत बनाता नाइ है
मशीनों से रोटियां बन रही है
अच्छी मस्ती छन रही है
क्योंकि सब सुविधाएँ मुफ्त है
बस सर्दी का कुफ्त है
अलाव के लिए लकड़ियों का इंतजाम है
हर तरह का  आराम है
इसलिये जल्दी नहीं ,हटने में देर है
क्योंकि अभी फसल कटने में देर है
नेताजी कहते है क़ानून काले है
जब तक वापस नहीं होते,
 हम नहीं जानेवाले है
हम नेताजी की बात मानते है
काला क्या है ,नहीं जानते है
बस थोड़ी सी नारेबाजी कर लेते है
दिन भर मौजमस्ती से पेट भर लेते है
कौन  क्यों कर रहा है ये सारे इंतजाम
इस बात से अनजान
बेचारे किसान
ये नहीं  जानते कि उनके नेताओं के
मापदंड दोहरे है
वो तो इस राजनीति के खेल के ,
सिर्फ मोहरे है
रोज रोज ये जो इतनी हलचल दिख रही है
कई भूले बिसरे नेताओं की
राजनैतिक रोटियां सिक रही है
फिर भी इनकी बातें मान
सर्दी में परेशान
बेचारे गरीब किसान

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
नीला आसमान खो गया

नीला आसमान खो गया
उगलती काला धुंवां है ,फैक्टरी की चिमनियां
कार,ट्रक ,डीज़ल ,प्रदूषित कर रहे सारी हवा
खेत में जलती पराली
पटाखों वाली दिवाली
नीला आसमान खो गया

वृक्ष ,जंगल कट रहे है बन रहे नूतन भवन
बिगड़ता जाता दिनोदिन ,प्रकृति का संतुलन
सांस लेने में घुटन है
बहुत ज्यादा प्रदूषण है
नीला आसमान खो गया

सरदियों  में धुंध कोहरा,गरमियों में आंधियां
बनी दूरी चाँद तारों और  इंसान  ,दरमियां
टिमटिमाते थे जो तारे
नज़र आते नहीं  सारे
नीला आसमान खो गया

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

Friday, December 25, 2020

बुढ़ापा और प्यार

तेरे गेसू भले ही अब गजब नहीं ढाते ,
श्वेत है ,सादगी है ,साधुओं से रहते है
नयन तेरे नहीं अब तीर चला पाते है ,
मोतियाबिंद से ढक ,बुझे बुझे रहते है
गुलाबी गाल का भी हाल बड़ा खस्ता है
लरजते होंठ हंसी हँसते है ,फीकी ,सादी
कसाव जिस्म का ,जाता है दिनबदिन ढलता
उफनता जिस्म भी अब रहा नहीं उन्मादी
न रही वो पुरानी शोखियाँ और वो जलवे ,
न बची जिस्म में  बाकी  वो पुरानी गरमी
न अदाओं में  ही बचा  है  वो पुराना जादू ,
नहीं बातों में बेतकल्लुफी और बेशरमी
मगर फिर भी न जाने क्यों ये हुआ जाता है ,
दिनों दिन बढ़ती ही जाती है मोहब्बत अपनी
तू मेरे साथ है और पास है ये क्या कम है ,
खुदा के ख़ैर से जोड़ी है सलामत  अपनी
मोहब्बत तन की ना बस मन की हुआ करती है ,
ये ही अहसास उमर ढलती है ,तब  होता है
 प्यार तो रहता है कायम सदा मरते दम तक,
करना पड़ता मगर हालात से समझौता  है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
मैं और मेरी रजाई

मैं और मेरी रजाई
अक्सर ये बातें करते है ,
तुम ना होती तो क्या होता
मैं सरदी में कैसे सोता

बैठ धूप  में दोपहरी तो
जैसे तैसे कट भी जाती
ठिठुरन भरी सर्द रातों में,
नींद मुझे पर कैसे आती
नरम ,मुलायम और रेशमी ,
ये कोमल आगोश तुम्हारा
जैसे चाहूँ ,तुम्हे  दबा  लूँ ,
पर रहना खामोश तुम्हारा
नहीं तकल्लुफ  हममें तुममें ,
हुआ प्यार का है समझौता
मै  और मेरी रजाई ,
अक्सर ये बातें करते है ,
तुम ना होती तो क्या होता

तभी रजाई ,हुई रुआंसी ,
करी शिकायत ,कसक कसक के
क्यों ये झूंठा प्यार दिखाते ,
तुम हो यार बड़े मतलब के
तुम्हारा ये प्यार मौसमी ,
मौसम बदला ,तुम बदलोगे
नहीं सुहाउंगी मै तुमको ,
दबा मुझे बक्से में दोगे
मैं बरसों तक साथ निभाती ,
लेकिन प्यार तुम्हारा थोथा
मैं और मेरी रजाई,
अक्सर ये बातें करते है ,
तुम ना होती तो क्या होता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

Wednesday, December 23, 2020

Monday, December 21, 2020

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Wednesday, December 9, 2020

कोरोना के साइड इफेक्ट


कोरोना काल के संग
बदल गए है यूं रंग ढंग
कि कुछ प्रचलित व्यंग ,
होने लग गये  है साकार

चूहा चिन्दियाँ  पाकर ,
बजाज तो नहीं बना ,पर
'मास्क' बनाने का आजकल ,
करने लगा है व्यापार

कोरोना के पहले
हसीनो के चेहरे
बड़े मतवाले होते थे
सुंदर सुहानेअधर
 लिपस्टिक लगाकर
रस भरे प्याले होते थे

पर कोरोना से डर  
मास्क में छिपे अधर ,
लिपस्टिक की बिक्री पर
 असर पड़ा है भारी
आई इस तरह मन्दी
करनी पड़ी तालाबंदी  
 कोरोना की मारी
लिपस्टिक इंडस्ट्री बेचारी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

Tuesday, December 8, 2020

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Saturday, December 5, 2020

हरिद्वार -एक प्रतिक्रिया

गंगा के तीर बसा ,इसीलिये तीरथ है ,
तीरथ में आकर के पैसे तर जाते है
भगत लोग आते है ,भाव लिए भक्ति का ,
इसीलिये चीजों के भाव बढे  जाते है
आओ तो दान करो ,जाओ तो दान करो ,
पंडे पुजारी सब ,दान गीत गाते है
नाम बड़ा सच्चा है ,हरद्वार आने पर ,
खर्चे के सभी द्वार ,खुद ही खुल जाते है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बुढ़ापे की आशिक़ी

एक दिन मैं छत पर धूप खा रहा था
जवानी का बीता जमाना याद आरहा था
'अभी तो मैं जवान हूँ ' ये ख्याल आने लगा
बासी कढ़ी में उबाल आने लगा
जागृत होने लगी मन में तम्मनायें
सोचा चलो ,बुढ़ापे में  इश्क़ लड़ाया जाये
बस निकालने मन की ये ही भड़ास
करने लगा किसी हमउम्र नाजनी की तलाश
घूमने जाने लगा पार्क में
मॉर्निग वाक में
रहता था इस ताक में
कि कोई साठ  पारी
सुन्दर ,सुमुखी अकेली नारी
मिल जाये तो भाग्य जग जाए
अंधे के हाथ बटेर लग जाए
किस्मत से एक हसीना का हुआ दीदार
आँखें हुई चार
उमर उसकी भी साठ के आसपास थी
शायद उसे भी कोई मुझ जैसे की तलाश थी
नज़रें लड़ी
बात आगे बड़ी
हमारी आपस में लगी  पटने
पार्क में ,गपशप में समय लगा कटने
ये बुढ़ापे का रोमांस
भी होता है बाय चांस
हम दोनों बासी उमर के लोग ,
ताज़ी मोहब्बत का मज़ा लूटने लगे
मन में मिलन के लड्डू फूटने लगे
वो भी पुरानी खायी  खेली थी
पर उसकी बातें बड़ी अलबेली थी
कभी कभी फरमाइशें करती थी  ऊलजलूल
एक दिन बोली जैसे कली बनती है फूल
वैसी ही कोई चीज खिलाओ  तो जाने
हम भी खिलाड़ी थे पुराने
हमने उसके आगे पॉपकॉर्न का पैकेट
कर दिया पेश
देख कर हमारी बुद्धि और ज्ञान
वो  हम पर हो गयी कुरबान
अब आपको क्यों बताएं हमें क्या मिला इनाम
एक दिन उसका मन चंचल
खाने को हुआ विकल
कोई ऐसी चीज जो फूल भी हो और फल
हमने अपना दिमाग भिड़ाया
और  उसको गुलाब जामुन खिलाया
और उसका ढेर सा प्यार पाया
उसकी फरमाइशें बड़ी निराली होती थी
पहेली सी उलझी ,पर प्यारी होती थी  
जैसे एक दिन बोली ,ऐसा कुछ खाया जाये
जो मन को भाये पर शुगर ना बढ़ाये
इतनी लिज्जत हो की तबियत हो जाए तर
और पेट भी जाए भर
उसकी इस फरमाइश पर
शुरू में तो हम हुए भौंचक्के
फिर उसे चाट के ठेले पर ले गए ,
खिलाने गोलगप्पे
वो एक एक गोलगप्पा मुंह में धरती थी
सी सी करती थी  
चटखारे भरती थी
तबियत हो गयी तर
पेट भी गया भर
और बढ़ी भी नहीं शुगर
 जब हम पूर्ण करते थे उसकी फरमाइशें
पूर्ण होती थी हमारी भी ख्वाइशें
पर उसकी पिछले हफ्ते वाली ,
फरमाइश थी अजब
उसे जलेबी खाने की लगी थी तलब
जलेबी ,उसे लगती बड़ी लजीज़ थी
पर उसे डाइबिटीज थी
जलेबी और वो भी शुगर फ्री
हमारे आगे मुश्किल थी बड़ी
पर हमारी अनुभवी आशिक़ी ने जोर मारा
जरा सोचा और विचारा
और छोटी छोटी जलेबी लेकर आये
आधी जलेबी को अपने होटों पर लगाए
और उसकी चाशनी चूस डाली
और रसहीन पोर्शन वाली जलेबी उसके मुंह में डाली
और उसका आधा रसीला भाग हम चूसने लगे
ऐसा स्वाद आया की हम रह गए ठगे के ठगे
एक तो जलेबी का रस और उसपर
उनके गुलाबी होठों के चुंबन का स्वाद
जिंदगी भर रहेगा याद
और वो भी मुस्करा रही थी
बिना शुगर की जलेबी का मज़ा उठा रही थी
हमारी नजदीकियां बढ़ती ही जारही थी
तो दोस्तों,हम आजकल इसतरह ,
बुढ़ापे के इश्क़ का मज़ा उठा रहे है
जब भी मौका मिलता है ,जलेबियाँ खा रहे है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '