आत्म दीप
लो फिर से आगई दिवाली
मेरे मन के दीप्त दीप पर
उस प्रदीप पर
काम क्रोध के
प्रतिशोध के
वे बेढंगे
कई पतंगे
शठरिपु जैसे
थे मंडराए
मुझ पर छाये
पर मेने तो
उनको सबको
बाल दिया रे
अपने मन से
इस जीवन से
मेने उन्हें निकाल दियाRE
मगन में जला
लगन से JALA
और मेने शांति की दुनिया बसा ली
लो फिर से आ गयी दिवाली
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