सब साथ साथ होते हैं तो दीवाली होती हैं
वरना तो बस हम होते हैं
और चार दीवारी होती हैं
तेरी आखों के दीप जलते है तो उजियारा हैं
वरना अमावस की रात काली होती हैं |
अपनत्व का अनार और स्नेह की रंगोली
सब मिल जाये तो ही दीवाली होती हैं
अमावस की रात, चाँद तू नहीं तो क्या
चाँद की सूरत वालों से रोशन दीवाली होती है |
जबसे शादी हुई तभी से यह जाना
कि घर की असली रौनक घरवाली होती हैं
पत्नी तो होती है फटाके जैसी
पर फूल-झड़ियो सी प्यारी साली होती है |
Composed by – Baheti Brothers (Madan Mohan, Dwarka and Jagdish)
वरना तो बस हम होते हैं
और चार दीवारी होती हैं
तेरी आखों के दीप जलते है तो उजियारा हैं
वरना अमावस की रात काली होती हैं |
अपनत्व का अनार और स्नेह की रंगोली
सब मिल जाये तो ही दीवाली होती हैं
अमावस की रात, चाँद तू नहीं तो क्या
चाँद की सूरत वालों से रोशन दीवाली होती है |
जबसे शादी हुई तभी से यह जाना
कि घर की असली रौनक घरवाली होती हैं
पत्नी तो होती है फटाके जैसी
पर फूल-झड़ियो सी प्यारी साली होती है |
Composed by – Baheti Brothers (Madan Mohan, Dwarka and Jagdish)
No comments:
Post a Comment