Sunday, January 9, 2011

तुम्हारे खर्राटे सुन कर

तुम्हारे खर्राटे सुन कर
सब भाग गए घर के मच्छर
लेकिन मै अब भी बिस्तर में
सोया हूँ कर बंद कान सखे
अब करने दो आराम सखे
ये सिर्फ आज की बात नहीं
ये रोज रोज का चक्कर है
ये तो बस हम ही जानते है
ये पीड़ा महा भयंकर है
आदत पड़ गयी हमें इसकी
अब इस बिन नीद न आती है
थोड़ी सी अगर शांति हो
तो नीद उचट बस जाती है
ये खर्राटे है नहीं सिर्फ
ये सात स्वरों का संगम है
ये गीत मधुर है तुम्हारा
ये मधुर तुम्हारी सरगम है
ना जरुरत कछुवा बत्ती की
ना हिट की कोई जरुरत है
तुम नींद चैन की सोती हो
आ जाती सब पर आफत है
ये नाक तुम्हारी सुन्दर सी
जब गाने लगती गान सखे
अब करने दो आराम सखे

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