Wednesday, February 2, 2011

गले की गली में

निकलती  जिधर से थी सरगम की ताने
हंसी, खिलखिलाहट,सुरीले से गाने
बड़ी खरखराहट उधर हो चली है
गले की गली में अजब  खलबली है
न वो मीठी बातें ,न ताने, न किच किच
भला बोलें कैसे ,गले में है खिच खिच
समझ में न आता ,ये क्या सिलसिला है
चलती जुबान है और थकता गला है
गले की गली में है ट्राफिक गजब का
यहाँ  आना जाना लगा रहता सबका
खांसी, उबासी, गर्म ,सर्द साँसे
सभी खाना पीना  गुजरता यहाँ से
कभी गोलगप्पे ,कभी आलू टिक्की
कभी ठंडा कोला ,या चुस्की बरफ की
गरम चाय काफी,कभी पीज़ा ,बर्गर
कभी चाटना  चाट चटकारे लेकर
पकोड़ी, समोसे, इमरती, जलेबी
गुजरते सभी इस गली से गले की
गला थक के बैठा है,सुस्ता रहा है
ये चुप्पी का आलम गजब ढा रहा है

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