Wednesday, April 27, 2011

विश्वामित्र

विश्वामित्र
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मै विश्वामित्र हूँ
तपस्वी हूँ
ज्ञानी हूँ ,ध्यानी हूँ
पर मुझे बहुत क्रोध आता है
कोई मेरी अवहेलना करे ,
तो चेहरा तमतमाता है
मेरे क्रोध के कारण,
दुष्यंत शकुंतला को भूल जाता है
पर मै भी हाड मांस का पुतला हूँ,
मुझ में भी कमजोरियां है
अभी तक मेरा तप भंग नहीं हुआ है
कुछ मजबूरियां है
मगर फिर भी आस है
पूरा विश्वास है
कभी तो कोई मधुमास मुस्केरायेगा
जो किसी मेनका को लाएगा
ये तप ,ये ध्यान,
सब बातें है दिखने की
मुझे तो बस प्रतीक्षा है ,
किसी मेनका के आने की

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

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