Tuesday, April 19, 2011

मजबूरी- गठबंधन की


मजबूरी- गठबंधन की

ये दुनिया कितनी हसीन है,फूल खिले है सुन्दर सुन्दर
जी करता सबकी खुशबू लूं,बनूँ भ्रमर ,रस पियूं जी भर
हिरन जैसी भरूं कुलांछे, खाऊं गुलाटी बन्दर जैसी
खुल कर खेलूँ,मौज मनाऊ,इच्छा दिल के अन्दर ऐसी
मन मलंग मचले मस्ती को,हैं सोये अरमान मचलते
लेकिन टूट टूट जाते हैं ,सारे सपने पलते ,पलते
अरे विवाहित मर्दों की क्या ,होती है सब इच्छा पूरी
जीवन डोर बंधी पत्नी  संग ,गठबंधन की है मजबूरी
पढ़ा लिखा सीधा सादा सा , था मै चलता जीवन पथ पर
पर किस्मत के हालातों ने,खींच लिया सत्ता के रथ पर
जी करता है ,करूं सफाई, सारा भ्रष्टाचार मिटा दूं,
बेईमानी,रिश्वतखोरी, महंगाई को दूर हटा दूं
भ्रष्टों की जमात लगी है ,कई दलों का है  ये दलदल
कैसे मै निपटूं इन सबसे,बहुत हो रही छीछालेदर
सत्ता से दागी चेहरों को,दूर हटाना ,बहुत जरूरी
शंशोपज है,लाचारी है,गठबंधन की है मजबूरी
           मदन  मोहन बहेती 'घोटू'





1 comment:

  1. अच्छी भावपूर्ण कविता
    आशा

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