उपदेश
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पत्नीजी थी डाटती,पतिजी थे भयभीत
अस्थि चर्म मम देह मह,तामे इसी प्रीत
तामे इसी प्रीत ,काम में हो जो इतनी
तो फिर कम हो जाए ,मुसीबत मेरी कितनी
साडी तक भी नहीं समेटना तुमको आती
रोज बनाते ,बेल न पाते ,गोल चपाती
मदन मोहन बहेती 'घोटू'
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पत्नीजी थी डाटती,पतिजी थे भयभीत
अस्थि चर्म मम देह मह,तामे इसी प्रीत
तामे इसी प्रीत ,काम में हो जो इतनी
तो फिर कम हो जाए ,मुसीबत मेरी कितनी
साडी तक भी नहीं समेटना तुमको आती
रोज बनाते ,बेल न पाते ,गोल चपाती
मदन मोहन बहेती 'घोटू'
बहुत सुन्दर रचना| धन्यवाद|
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