Tuesday, June 7, 2011

मज़ा ही क्या आया?

मज़ा ही क्या आया?
----------------------
पूरी,कचोरी,बालूशाही
गरम जलेबी जम कर खायी
दहीबड़े,आलू की टिक्की
और रबड़ी की ठंडी कुल्फी
खूब दबा कर ये सब खाकर,
अगर जोर से ना ली डकार
   तो फिर खाने का मज़ा ही क्या आया?
दिन भर काम किया थक सोये
सपनो की दुनिया में खोये
इधर उधर करवट भी बदली
और नींद भी आई तगड़ी
लेकिन ऐसे सोते सोते,
नहीं भरे जम कर खर्राटे
   तो फिर सोने का मज़ा ही क्या आया?
पिक्चर हो कोमेडी जेसी
या फिर हरकत ऐसी वैसी
कोई हंसाये जोक सुना के
हंसने में ना लगे ठहाके
पेट पकड़ कर हँसते,हँसते,
आँखों में पानी ना आया
     तो फिर हंसने का मज़ा ही क्या आया?
जिसका बरसों इंतजार था
मिलने को दिल बेक़रार था
और मिली जब शोख हसीना
हंस कर मुझे सिखाया जीना
उसके नाज़ औ नखरे सहते
प्यार में पसीना न बहाया
     तो फिर प्यार का मज़ा ही क्या आया?


मदन मोहन बहेती 'घोटू'

No comments:

Post a Comment