अपनो की मार
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१
आँखों का काजल,
वो ही चुरा सकता है
जो आँखों में बसता है
२
अकेली लोहे की कुल्हाड़ी
बिलकुल बेबस है बेचारी
लेकिन हत्ते की लकड़ी जब लगती है
तो लकड़ी का पूरा जंगल,
काट वो सकती है
३
दही ,दूध का जाया है
मगर ,उसी के एक कतरे ने
दूध को भी जमाया है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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१
आँखों का काजल,
वो ही चुरा सकता है
जो आँखों में बसता है
२
अकेली लोहे की कुल्हाड़ी
बिलकुल बेबस है बेचारी
लेकिन हत्ते की लकड़ी जब लगती है
तो लकड़ी का पूरा जंगल,
काट वो सकती है
३
दही ,दूध का जाया है
मगर ,उसी के एक कतरे ने
दूध को भी जमाया है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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