Wednesday, July 27, 2011

आज गिरी फिर बिजली

आज गिरी फिर बिजली
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जुल्फों को फैला कर,
तुम थोडा मुस्काई
आज घिरी  फिर बदली
आज गिरी  फिर बिजली
भीगे से से बालों को ,
तुमने जब झटकाया
पानी की बूंदों से,
सावन सा बरसाया
हुई ऋतू  फिर पगली
आज गिरी फिर बिजली
गीली हो चिपक गयी,
गौरी के तन चोली
गालों पर बिखर गयी,
शर्मीली  रांगोली
पिया रंग ,फिर रंग ली
आज गिरी फिर बिजली
देख संवारता तुमको,
आइना हर्षाया
ताज़ा सा खिला रूप,
लख कर मन मुस्काया
मिलन आस फिर जग ली
आज गिरी फिर बिजली

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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