Saturday, August 27, 2011

हुंकार

हुंकार
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अब सड़कों पर उतर आई है,जनता भर कर क्रोध में
लोकपाल बिल लाना होगा,भ्रष्टाचार विरोध में
तम्हे चुना,संसद में भेजा,मान तुम्हारे वादों को
समझ नहीं पायी थी जनता,इतने भष्ट इरादों को
तुमने सत्ता में आते ही,जी भर लूट खसोट करी
कोई करे क्या,राज्य कोष को,लगे लूटने जब प्रहरी
जनसेवा को भूल ,लिप्त तुम थे आमोद प्रमोद में
अब सड़कों पर उतर आई है जनता भर कर क्रोध में
कई करोड़ों लूट ले गया,राजा  अपनी  गाडी  में
खेल खेल में,कई करोड़ों ,लूट लिए कलमाड़ी ने
आदर्शों की सोसाइटी में,आदर्शों का हनन हुआ
भष्टाचार,लूट,घोटाले,रोज रोज का चलन हुआ
कठपुतली बन,नाचे तुम,पूंजीपतियों की गोद में
अब सड़कों पर उतर आई है जनता भर कर क्रोध में
सुरसा से मुख सी मंहगाई,रोज रोज बढती जाती
 कैसे नेता हो जो तुमको,ये सब नज़र नहीं आती
 काबू इसे नहीं कर सकते,कहते हो,मजबूरी है
नहीं पास में हाथ तुम्हारे,कोई जादू की छड़ी है
बहुत त्रसित है और दुखी है,जनता है आक्रोश में
अब सड़कों पर उतर आई है,जनता भर आक्रोश में
लूट देश का पैसा कितना,स्विस बेंकों में भेज दिया
पास मगर चालीस बरसों में,लोकपाल बिल नहीं किया
शोषक जब होती है सत्ता,जन आक्रोश उमड़ता है
मिश्र,लीबिया सा गद्दी को,छोड़ भागना पड़ता है
देखो जन जन,लोग करोड़ों,अब सब हुए विरोध में
अब सड़कों पर उतर आई है,जनता भर आक्रोश में
लोकपाल बिल लाना होया,भ्रष्टाचार विरोध में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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