रस्सी की पीड़ा
-----------------
कूए के पत्थर पर
रस्सी ने चल चल कर
जब बना दिए अपने निशान
सब करने लगे उसका गुण गान
उसके काम और नाम का शोर हो गया है
पर किसी ने नहीं देखा,
रोज हजारों बाल्टियों का,
बोझ खींचते खींचते,
और पानी में भीजते,
उसका रेशा रेशा,कितना कमजोर हो गया है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
-----------------
कूए के पत्थर पर
रस्सी ने चल चल कर
जब बना दिए अपने निशान
सब करने लगे उसका गुण गान
उसके काम और नाम का शोर हो गया है
पर किसी ने नहीं देखा,
रोज हजारों बाल्टियों का,
बोझ खींचते खींचते,
और पानी में भीजते,
उसका रेशा रेशा,कितना कमजोर हो गया है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
No comments:
Post a Comment