Thursday, October 13, 2011

छोटी दुनिया-बड़ा नजरिया

छोटी  दुनिया-बड़ा नजरिया
---------------------------------
मैंने पूछा लिफ्ट  मेन से
ऊपर नीचे, नीचे ऊपर
बार बार आते जाते हो
लोगों को अपनी मंजिल तक,
रोज़ रोज़ तुम पंहुचाते हो
छोटे से इस कोठियारे में,
दिन भर टप्पा खाते रहते,
तुमको घुटन नहीं होती है?
लिफ्ट मेन बोला  मुस्का  कर
सर,ये तो अपनी ड्यूटी है
इससे ही रोटी मिलती है
लिफ्ट भले ही ये छोटी है,
पर इसमें दुनिया दिख जाती
हरेक सफ़र में नूतन चेहरा,
हर फेरे में नयी  खुशबूये
बार बार मेरे साथ
लिफ्ट में ऊपर नीचे जाकर
झूला झूलने का सुख पाकर
खुश होते हुए बच्चे
अचानक एक दूसरे से मिल जाने पर,
हाय, हल्लो करते हुए पडोसी
बच्चों के भरी स्कूली बेग थामती हुई
अस्त व्यस्त मातायें,
कोलेज जाने के नाम पर,
पिक्चर का प्रोग्राम बनाते हुए,
युवक युवतियां
अपने मालिक मालकिन की ,
बुराइयाँ करते हुए,
नौकर नौकरानियां
सुबह सुबह अख़बारों का बण्डल उठाकर,
दुनिया जहाँ की खबर बाँटने वाले,
न्यूज़ पेपर वेंडर
बहुओं की बुराई करती हुई सासें,
और सासों की आलोचना करती हुई बहुए
अपने पालतू कुत्ते को
पति से ज्यादा प्यार करती महिलाएं
बसों की भीड़ से उतर
पसीने में तर बतर
कुछ थके हारे पस्त चेहरे
अपनी बीबी के आगे भीगी बिल्ली बनते,
बड़े बड़े रोबीले साहेब
शोपिंग कर ढेरों बैगों का ,बोझ उठाये
थकी हुई पर प्रसन्न  महिलायें
हर बार
आती है एक नयी खुशबू की फुहार
नए नए परिधानों में
नए पुराने लोग
विभिन्न वेशभूषाएं
भिन्न भिन्न भाषाएँ
मुझको इस छोटे से घर में
हिंदुस्तान नज़र आ जाता
कभी बिछड़ों को मिलाता हूँ
कभी जुदाई के दृश्य देखता हूँ
ऊपर नीचे करते करते
मै रोज़ दुनिया के कई रंग देखता हूँ
और आप सोचते है की मुझे घुटन होती होगी
क्योंकि मै एक छोटे से डिब्बे में सिमटा हूँ
मै तो इस छोटे से डब्बे में भी,
खुश रहता हूँ, चेन से


मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

No comments:

Post a Comment