सूरज पसर गया
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दूर दूर तक बिखरे हुए घर
और घरों की छतों से,
आसमान की और झांकते हुए एंटीना
और पानी से भरी, लदी,
काली काली काया वाली,
ढेरों टंकियां
कहीं कहीं सर उठाते हुए,
मोबाईल के टॉवर
सड़क के किनारे,
नन्हे से कन्धों पर,
भविष्य का भारी बोझा लादे
बस्ते लिये हुए ,
बस का इंतजार करते हुए बच्चे
मसहरी छोड़,
अंगडाई लेती हुई ललनायें
पुरब के कोने से,
सूरज ने झाँका और,
खाली सी छतों पर,
पग फैला कर पसर गया
और सुबह हो गयी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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दूर दूर तक बिखरे हुए घर
और घरों की छतों से,
आसमान की और झांकते हुए एंटीना
और पानी से भरी, लदी,
काली काली काया वाली,
ढेरों टंकियां
कहीं कहीं सर उठाते हुए,
मोबाईल के टॉवर
सड़क के किनारे,
नन्हे से कन्धों पर,
भविष्य का भारी बोझा लादे
बस्ते लिये हुए ,
बस का इंतजार करते हुए बच्चे
मसहरी छोड़,
अंगडाई लेती हुई ललनायें
पुरब के कोने से,
सूरज ने झाँका और,
खाली सी छतों पर,
पग फैला कर पसर गया
और सुबह हो गयी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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