ऊनी कपड़ों वाला बक्सा
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सर्दी का मौसम आया तो मैंने खोला,
बक्सा ऊनी कपड़ों वाला
जो पिछले कितने महीनों से,
घर के एक सूने कोने में,
लावारिस सा पड़ा हुआ था,
हम लोग भी कितने प्रेक्टिकल होते है
जरुरत पड़ने पर ही किसी को याद करते है,
वर्ना,उपेक्षित सा छोड़ देते है
बक्से को खोलते ही,
फिनाईल की खुशबू के साथ,
यादों का एक भभका आया
मैंने देखा ,फिनाईल की गोलिया,
जब मैंने रखी थी ,पूरी जवान थी,
पर मेरे कपड़ों को सहेजते ,सहेजते,
बुजुर्गों की तरह ,कितनी क्षीण हो गयी है
सबसे पहले मेरी नज़र पड़ी,
अपने उस पुराने सूट पर,
जिसे मैंने अपनी शादी पर पहना था,
और शादी की सुनहरी यादों की तरह,
सहेज कर रखा था
मुझे याद आया,जब तुमने पहली बार,
अपना सर मेरे कन्धों पर रखा था,
मैंने ये सूट पहन रखा था
मैंने इस सूट को,हलके से सहलाया,
और कोशिश की ढूँढने की,
तुम्हारे उन होठों के निशानों को,
जो तुमने इस पर अंकित किये थे,
पिछले कई वर्षों से,
इसे पहन नहीं पा रहा हूँ,
क्योंकि सूट छोटा हो गया है,
पर हकीकत में,सूट तो वही है,
मै मोटा हो गया हूँ,
क्योंकि कपडे नहीं बदलते,
आदमी बदल जाता है
फिर निकला वह बंद गले वाला स्वेटर,
जिसे उलटे सीधे फंदे डाल,
तुमने बड़े प्यार से बुना था,
और जिसे पहनने पर लगता था,
की तुमने अपने बाहुपाश मै,
कस कर जकड लिया हो,
इस बार उस स्वेटर के कुछ फंदे,
उधड़ते से नज़र आये
फिर दिखी शाल,
देख कर लगा,जैसे रिश्तों की चादर पर,
शक के कीड़ों ने,
जगह जगह छेद कर दिए है,
मन मै उभर आई,
जीवन की कई ,खट्टी मीठी यादें,
भले बुरे लोग,
सर्द गरम दिन,
बनते बिगड़ते रिश्ते
फिर मैंने सभी ऊनी कपड़ों को,
धूप में फैला दिया,इस आशा से कि,
सूरज कि उष्मा से,
शायद इनमे फिर से,
नवजीवन का संचार हो जाये
मै हर साल जब भी,
ऊनी कपड़ों का बक्सा खोलता हूँ,
चंद पल,पुरानी यादों को जी लेता हूँ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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सर्दी का मौसम आया तो मैंने खोला,
बक्सा ऊनी कपड़ों वाला
जो पिछले कितने महीनों से,
घर के एक सूने कोने में,
लावारिस सा पड़ा हुआ था,
हम लोग भी कितने प्रेक्टिकल होते है
जरुरत पड़ने पर ही किसी को याद करते है,
वर्ना,उपेक्षित सा छोड़ देते है
बक्से को खोलते ही,
फिनाईल की खुशबू के साथ,
यादों का एक भभका आया
मैंने देखा ,फिनाईल की गोलिया,
जब मैंने रखी थी ,पूरी जवान थी,
पर मेरे कपड़ों को सहेजते ,सहेजते,
बुजुर्गों की तरह ,कितनी क्षीण हो गयी है
सबसे पहले मेरी नज़र पड़ी,
अपने उस पुराने सूट पर,
जिसे मैंने अपनी शादी पर पहना था,
और शादी की सुनहरी यादों की तरह,
सहेज कर रखा था
मुझे याद आया,जब तुमने पहली बार,
अपना सर मेरे कन्धों पर रखा था,
मैंने ये सूट पहन रखा था
मैंने इस सूट को,हलके से सहलाया,
और कोशिश की ढूँढने की,
तुम्हारे उन होठों के निशानों को,
जो तुमने इस पर अंकित किये थे,
पिछले कई वर्षों से,
इसे पहन नहीं पा रहा हूँ,
क्योंकि सूट छोटा हो गया है,
पर हकीकत में,सूट तो वही है,
मै मोटा हो गया हूँ,
क्योंकि कपडे नहीं बदलते,
आदमी बदल जाता है
फिर निकला वह बंद गले वाला स्वेटर,
जिसे उलटे सीधे फंदे डाल,
तुमने बड़े प्यार से बुना था,
और जिसे पहनने पर लगता था,
की तुमने अपने बाहुपाश मै,
कस कर जकड लिया हो,
इस बार उस स्वेटर के कुछ फंदे,
उधड़ते से नज़र आये
फिर दिखी शाल,
देख कर लगा,जैसे रिश्तों की चादर पर,
शक के कीड़ों ने,
जगह जगह छेद कर दिए है,
मन मै उभर आई,
जीवन की कई ,खट्टी मीठी यादें,
भले बुरे लोग,
सर्द गरम दिन,
बनते बिगड़ते रिश्ते
फिर मैंने सभी ऊनी कपड़ों को,
धूप में फैला दिया,इस आशा से कि,
सूरज कि उष्मा से,
शायद इनमे फिर से,
नवजीवन का संचार हो जाये
मै हर साल जब भी,
ऊनी कपड़ों का बक्सा खोलता हूँ,
चंद पल,पुरानी यादों को जी लेता हूँ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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