Wednesday, November 23, 2011

राजनीति-सेवा या मेवा

राजनीति-सेवा या मेवा
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एक नेताजी थे काफी खुर्राट
हमने कहा, सिखा दो हमें भी राजनीति का पाठ
कैसे कर जनता की सेवा
मिले हमें खाने को मेवा
नेताजी मुस्कराए और बोले,
तुमने मेवों की बात कही है सो है ठीक
राजनीति का पहला पाठ,
मेवों   से ही तुम लो सीख
मेवे तीन प्रकार के पाए जाते है
पहले प्रकार के मेवे ,बहार से सख्त ,
और भीतर से नरम होते है,
और इस श्रेणी में ,बादाम और अखरोट आते है
राजनीति में भी कुछ लोग ऐसे मिलते है
जो बाहर से अखरोट की तरह सख्त दिखते है
अखरोट खाने का सब से अच्छा तरीका है
एक अखरोट को दुसरे अखरोट से टकराओ
उनमे से एक टूट जाएगा,
और आप मजे से गिरी खाओ
इसी तरह मैंने कई ओपोजिशन के अखरोटों को टकराया है
और प्रेम से गिरी का मज़ा उठाया है
और दुसरे किस्म का मेवा,
किशमिश,अंजीर जैसा पाया जाता है
जिसे वैसा का वैसा ही खाया जाता है
आम आदमी जैसी पकी हुई अंजीरों को,
आश्वासनों की रस्सी में पिरो कर,
माला बना कर सुखाया जाता है
और चुनाव के समय प्रेम से खाया जाता है
कुछ अंगूरों से तो मदिरा बना कर,
सत्ता की मस्ती का मज़ा लूटते है
और बाकी दूसरी किस्म के अंगूर जो छूटते है
उन्हें सुखा कर किशमिश बनाई जाती है
जो कई मौको प्रसाद स्वरुप चढ़ाई जाती है
तीसरे किस्म का मेवा खुबानी जैसा होता है
जो बाहर से नरम ,भीतर से कठोर होता है
पार्टी के हाईकमांड की तरह,
बाहर की परत पर ,मीठी मीठी बातें तमाम होती है
पर अन्दर की गुठली,बड़ी सख्त जान होती है
और हम जैसे अनुभवी नेताओं को ही ये मालुम है
की इस सख्त गुठली के अन्दर क्या गुण है
इस सख्त गुठली के अन्दर बादाम सी गिरी होती है
जैसे सीप में मोती है
पर उस गुठली से बादाम निकालना भी एक कला है
इसे जो जानता है,होता उसी का भला है
अब तो तुम समझ गए होगे कि राजनीति क्या है
सेवा के मेवा में कितना मज़ा है

मदन मोहन बाहती'घोटू'

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