रिटायर हो हम गए है
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रिटायर हो हम गए है
बदल सब मौसम गए है
थे कभी सूरज प्रखर हम
हो गए है आज मध्यम
आई जीवन में जटिलता
मुश्किलों से वक़्त कटता
थे कभी हम बड़े अफसर
सुना करते सिर्फ 'यस सर'
गाड़ियाँ थी,ड्रायवर थे
नौकरों से भरे घर थे
रहे चमचों से घिरे हम
रौब का था गजब आलम
जरा से करते इशारे
काम होते पूर्ण सारे
सदा रहते व्यस्त थे हम
काम के अभ्यस्त थे हम
आज कल बैठे निठल्ले
रह गए एक दम इकल्ले
हो गए है बड़े बेबस
नौकरों के नाम पर बस
पार्ट टाइम कामवाली
है बुरी हालत हमारी
काम करते हाथ से है
क्षुब्ध अपने आप से है
रौब अब चलता नहीं है
कोई भी सुनता नहीं है
आदतें बिगड़ी हुई है
कोई भी चारा नहीं है
बस जरासी पेंशन है
और हजारों टेंशन है
हो बड़े बेदम गए है
रिटायर हो हम गए है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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रिटायर हो हम गए है
बदल सब मौसम गए है
थे कभी सूरज प्रखर हम
हो गए है आज मध्यम
आई जीवन में जटिलता
मुश्किलों से वक़्त कटता
थे कभी हम बड़े अफसर
सुना करते सिर्फ 'यस सर'
गाड़ियाँ थी,ड्रायवर थे
नौकरों से भरे घर थे
रहे चमचों से घिरे हम
रौब का था गजब आलम
जरा से करते इशारे
काम होते पूर्ण सारे
सदा रहते व्यस्त थे हम
काम के अभ्यस्त थे हम
आज कल बैठे निठल्ले
रह गए एक दम इकल्ले
हो गए है बड़े बेबस
नौकरों के नाम पर बस
पार्ट टाइम कामवाली
है बुरी हालत हमारी
काम करते हाथ से है
क्षुब्ध अपने आप से है
रौब अब चलता नहीं है
कोई भी सुनता नहीं है
आदतें बिगड़ी हुई है
कोई भी चारा नहीं है
बस जरासी पेंशन है
और हजारों टेंशन है
हो बड़े बेदम गए है
रिटायर हो हम गए है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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