Tuesday, December 13, 2011

मैंने तो अपने इस घर में---,

मैंने तो अपने इस घर में---,
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मैंने तो अपने इस घर में,जाने क्या क्या क्या ना देखा
खुशियों को भी हँसता देखा,तन्हाई को बसता देखा 
उगते सूरज की किरणों से,मेरा घर रोशन होता था
फिर दोपहरी में धूप भरा,सारा घर आँगन होता था  
बगिया में खिलते फूलों की ,खुशबू इसको महकाती थी
हर सुबह पंछियों के कलरव की चहक इसे चहकाती थी
आती थी रोज रसोई से,सोंधी खुशबू पकवानों की
रौनक सी रहती थी हरदम,आते जाते मेहमानों की
उंगली पकडे ,नन्ही पोती,जाती थी स्कूल ,ले बस्ता
फिर नन्हा सा पोता आया,महका घर का ये गुलदस्ता
नन्हे मुस्काते बच्चों की,मीठी बातें,चंचल चंचल
उनकी प्यारी प्यारी जिद्दें,नन्हे क़दमों की चहल पहल
वो दिन कितने मनभावन थे,सुख शांति  से हमने जीये
होली पर रंग बिखरते थे,दीवाली पर जलते दीये
लेकिन फिर इसी नज़र लगी,क्या हुआ किसे,क्या बतलाये
जिस जगह गुलाब महकते थे,केक्टस के कांटे उग  आये
वो प्यार मोहब्बत की खुशबू,नफरत में आकर बदल गयी
हो गयी ख़ुशी सब छिन्न भिन्न,मेरी दुनिया ही बदल गयी
कुछ गलतफहमियां ,बहम और कुछ अहम आ गए हर मन में
अलगाववाद की दीवारें, आ खड़ी हो गयी आँगन में
हो गए अलग ,दिल के टुकड़े,जीवन में और बचा क्या था
जिस घर में रौनक रहती थी,वो सूना  सूना लगता था
उस घर के हर कोने,आँगन में,याद पुरानी बसती थी 
देखें फिर से ,रौनक,मस्ती,ये आँखें बहुत तरसती थी
दो चार बरस तन्हाई में,बस काट दिये  सहमे सहमे
मन मुश्किल से लगता था उस सूने सूने से घर में
तन्हाई देने लगी चुभन,और मन में बसने लगी पीड़
वह नीड़ छोड़ कर मैंने भी ,फिर बसा लिया निज नया नीड़
जब धीरज भी दे गया दगा,आशाओं ने दिल तोड़ दिया
थी घुटन,बहुत भारी मन से,मैंने अपना घर छोड़ दिया
देखी फूलों की मुस्काने, फिर पतझड़ भी होता देखा
मैंने तो अपने उस घर में,जाने क्या क्या क्या ना देखा

मदन मोहन बाहेती'घोटू;'

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