Saturday, December 17, 2011

नहीं नामुमकिन कुछ भी

पूजना पाषाण का,पाषाण युग से चल रहा,
पुजते पुजते बन गए ,पाषाण भी है देवता
ये जो नदियाँ बह रही है ,पहाड़ो के बीच से,
चीर  कर पत्थर को पानी ने बनाया रास्ता
आदमी को कोशिशें ,करना निरंतर चाहिये,
रस्सियाँ भी पत्थरो पर ,बना देती है निशां
प्यार का अपने प्रदर्शन,करो तुम करते रहो,
एक दिन तो आप पर ,तकदीर होगी  मेहरबां
नहीं नामुमकिन है कुछ भी,अगर हो सच्ची लगन
आदमी की बाजुओं में ,हो अगर थोडा सा दम
समंदर के पानी पर जब धूप की पड़ती किरण
बादलों में बदल जाता,छोड़ देता खारापन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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