छलकते जाम पर इतराए तू क्यों साकी है
बुझे हुए इन शोलो में दहक बाकी है
सर पर है चाँद या की चांदनी तू इन पे न जा
तेरे संग चाँद पर जाने की हवस बाकी है
बहुत बरसें है ये बादल तो कई बरसों तक
फिर से आया है सावन की बरस बाकी है
दूर से आँख चुरा लेती है ,आँखे तो मिला
देख इन बुझते चिरागों में चमक बाकी है
हम तो थे फूल गुलाबों के बहुत ही महके
सूखने लग गए है तो भी महक बाकी है
भले ही शाम है और ढलने लगा है सूरज
छाई है दूर तक लाली कि चमक बाकी है
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