Monday, March 19, 2012

अखबार पढने का मज़ा ही कुछ और है

     अखबार पढने का मज़ा ही कुछ और है

मैंने अपने मित्र से बोला यार

टी वी की कितनी ही चेनले,
चैन नहीं लेने देती,
दिन रात,बार बार,
सुनाती रहती है सारे समाचार
ख़बरें तो वो की वो ही होती है,
फिर तुम फ़ालतू में,
क्यों खरीदते हो अखबार
मित्र ने मुस्का कर
दिया ये उत्तर,
आप अपनी पत्नी को,
आते,जाते,पकाते,खिलाते,
दिन में देखते हो कितनी ही बार
मगर मेरे यार,
जिस तरह बीबी को बाँहों में लेकर,
नज़रे मिला कर ,
और उसकी खुशबू पाकर,
प्यार करने का मज़ा ही कुछ और है
वैसे ही सुबह सुबह,
सौंधी सौंधी खुशबू वाले अखबार को,
हाथों में लेकर और उस पर नज़रें गढ़ा कर,
उसके पन्ने पलटने,
और ध्यान से पढने का मज़ा ही कुछ और है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

No comments:

Post a Comment