Monday, September 17, 2012

चार दिन की जिंदगी

    चार दिन की जिंदगी

जन्म ले रोते हैं पहले,बाद में मुस्काते हैं,
                           और फिर किलकारियों से,हम लुटाते प्यार हैं
फिर पढाई,लिखाई और खेलना मस्ती भरा,
                          ये किशोरावस्था भी,होती गज़ब की यार   है
 प्यार,जलवा,नाज़,अदाएं,मौज,मस्ती रात दिन,
                          ये जवानी,चार दिन का ,मद भरा  त्योंहार  है
और फिर लाचार करता है बुढ़ापा सभी को,
                          कुछ नहीं उपचार इसका,जिंदगी दिन चार है                 

मदन मोहन बहेती'घोटू'

No comments:

Post a Comment