रेपिंग पेपर
मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
चमक दमक वाला सुन्दर सा,
मै तो एक आवरण भर हूँ
मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
छोटी,बड़ी सभी सौगातें
मुझ में लोग छुपा कर लाते
मेरा आकर्षण है बस तब तक
मुझ में गिफ्ट छुपी है जब तक
जब भी मै हाथों में आता
जो भी पाता,वो मुस्काता
सभी देखते रूप चमकता
अन्दर क्या है की उत्सुकता
जैसे कभी सुहाग रात में
पहली पहली मुलाक़ात में
आकुल पति उठाता जिसको,
मै दुल्हन का, घूंघट भर हूँ
मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
कितनी गिफ्टें,नयी,पुरानी
अगर आपको है निपटानी
मेरे बिना काम ना चलता
मै हूँ उनका ,रूप बदलता
एक गिफ्ट,कितने ही रेपर
बदल,बदल,बदला करते घर
लेकिन गिफ्ट कोई जो पाता
उसे आवरण नहीं सुहाता
अन्दर क्या है,यही चाव है
उत्सुकता ,मानव स्वभाव है
तिरस्कार है मेरी नियति,
मै गूदा ना,छिलका भर हूँ
मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
लिपट गिफ्ट के प्यारे तन से
मै आनंदित होता ,मन से
जन्मदिवस,शादी,दीवाली
रहती मेरी शान निराली
हाथों हाथ ,लिया मै जाता
बड़े गर्व से हूँ इठलाता
देने वाला जब जाता है
मुझ को फाड़ दिया जाता है
मेरी तरफ नहीं देखेंगे
टुकड़े टुकड़े कर फेंकेगे
पहुंचूंगा कूड़ेदानी में,
अल्प उम्र है,मै नश्वर हूँ
मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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