Wednesday, February 6, 2013

जीवन बोध

           जीवन बोध

आगम बोध,प्रसूति गृह में,निगमबोध श्मसान में
जीवनबोध  बड़ी मुश्किल से ,आता है इंसान में
आता जब मानव दुनिया में ,होता उसको बोध कहाँ
भोलाभाला निश्छल बचपन,काम नहीं और क्रोध कहाँ
और जब जाता है तो उसको,बोध कहाँ रह पाता  है
खाली हाथ  लिए आता  है,खाली हाथों  जाता है
जिन के खातिर ,सारा जीवन,रहता है खटपट करता
नाते जाते छूट सभी से, सांस आखरी जब  भरता
जीवन भर चिंता में जलता,चिता जलाती मरने पर
एक राख की ढेरी बन कर ,रह जाता  अस्थिपंजर
कंचन काया ,जिस पर रहता ,था अभिमान जवानी में
अस्थि राख बन ,तर जाते है ,गंगाजी के  पानी में
उसे बोध है,मृत्यु अटल है,फिर भी है अनजाना सा
मोह माया के चक्कर में फस,रहता है दीवाना  सा
पास फ़ैल होता रहता है,जीवन के  इम्तिहान में
जीवनबोध  बड़ी मुश्किल से ,आता है इंसान में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

1 comment:

  1. घोटू जी आपने जीवन का मर्म कह दिया इस कविता के माध्यम से | अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं इस कविता को अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करना चाहूँगा | मेरे दिल को छु लिया इस कविता ने और इसके शब्द अन्दर तक समां गए हैं | आपकी सोच और ज्ञान का मैं कायल हो गया हूँ | मेरे लिए आप बुज़ुर्ग है मैं इस कविता के लिए आपके चरण स्पर्श करता हूँ और अपना प्रेम और आदर सम्मान आपको समर्पित करता हूँ | हालाँकि आपसे आज तक मिला नहीं हूँ किन्तु आपकी उपस्थिति अपने समक्ष महसूस कर सकता हूँ आपकी कविताओं के ज़रिये | उम्मीद है जीवन में कभी तो आपसे मुलाक़ात होगी | सहृदय बहुत बहुत आभार |

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