मेरी माँ सचमुच कमाल है
बात बात में हर दिन ,हर पल,
रखती जो मेरा ख़याल है
छोटा बच्चा मुझे समझ कर,
करती मेरी देखभाल है
ममता की जीवित मूरत है,
प्यार भरी वो बेमिसाल है
सब पर अपना प्यार लुटाती ,
मेरी माँ सचमुच कमाल है
जब तक मै ना बैठूं,संग में,
वो खाना ना खाया करती
निज थाली से पहले मेरी ,
थाली वो पुरसाया करती
मैंने क्या क्या लिया और क्या ,
खाया रखती ,तीक्ष्ण नज़र है
वो मूरत साक्षात प्रेम की ,
वो तो ममता की निर्झर है
बूढी है पर अगर सहारा ,
दो तो मना किया करती है
जीवन की बीती यादों में ,
डूबी हुई ,जिया करती है
कोई बेटी बेटे का जब ,
फोन उसे आ जाया करता
मैंने देखा ,बातें करते ,
उन आँखों में प्यार उमड़ता
पोते,पोती,नाती,नातिन,
सब की लिए फिकर है मन में
पूजा पाठ,सुमरनी ,माला ,
डूबी रहती रामायण में
कोई जब आता है मिलने ,
बड़ी मुदित खुश हो जाती है
अपने स्वर्ण दन्त चमका कर ,
हो प्रसन्न वो मुस्काती है
बाते करने और सुनने का ,
उसके मन में बड़ा चाव है
अपनापन, वात्सल्य भरा है ,
और सबके प्रति प्रेम भाव है
याददाश्त कमजोर हो गयी ,
बिसरा देती है सब बातें
है कमजोर ,मगर घबराती ,
है दवाई की गोली खाते
उसके बच्चे ,स्वस्थ ,खुशी हो ,
देती आशीर्वाद हमेशा
अपने गाँव ,पुराने घर को ,
करती रहती याद हमेशा
बड़ा धरा सा ,विस्तृत नभ सा ,
उसका मन इतना विशाल है
सब पर अपना प्यार लुटाती,
मेरी माँ सचमुच कमाल है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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