दुःख पीड़ा में ,इक दूजे का हाथ बटा लो
मै तुम्हे सम्भालूँ ,तुम मुझे संभालो
जब भी आती याद जवानी की वो बातें
दिन मस्ती के होते थे और मादक रातें
बीत गया वो दौर खुशी का ,हँसते ,गाते
अब तो बस यादें है जिनसे मन बहलाते
आपा धापी में जीवन की ,बस मशीन बन
चलते ,रुकते ,यूं ही बीत गया सब जीवन
भूली बिसरी उन यादों को आओ खंगालो
मै तुम्हे सम्भालूँ,तुम मुझे संभालो ,,
तुम संग बंधन बाँध ,बंधे दुनियादारी में
फंसे गृहस्थी के चक्कर,जिम्मेदारी में
बच्चों का पालन पोषण और बीमारी में
जीवन बीत गया यूं ही मारामारी में
उमर काट दी ,यूं ही घुट घुट ,रह कर चिंतित
पर हम दोनों,इक दूजे पर ,अब अवलंबित
एक दूसरे को सुख दुःख में,देखो भालो
मै तुम्हे सम्भालूँ, तुम मुझे संभालो
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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