जब पसीना गुलाब था
वो दिन भी क्या थे ,जब कि पसीना गुलाब था
हम भी जवान थे और तुममे भी शबाब था
तुम्हारा प्यार मदभरा जामे-शराब था
उस उम्र का हर एक लम्हा ,लाजबाब था
बेसब्रे थे और बावले ,मगरूर बहुत थे
और जवानी के नशे में हम चूर बहुत थे
पर जोशे-जिन्दगी से हम भरपूर बहुत थे
लोगों की नज़र में हम नामाकूल बहुत थे
जब इन तिलों में तेल था ,वो दिन नहीं रहे
अरमान दिल के हमारे आंसू में सब बहे
अपने ही गये छोड़ कर ,अब किससे क्या कहे
टूटा है दिल, उम्मीद के ,सारे किले ढहे
हमने था जिन्दगी को बड़े चाव से जिया
आबे-हयात उनके लबों से था जब पिया
बढ़ती हुई उम्र ने है ऐसा सितम किया
वो दिन गए जब मारते थे ,फ़ाक़्ता मियां
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
No comments:
Post a Comment