उलझनों में फंसा जीवन
बिना भोजन ,भजन कोई क्या करेगा
ह्रदय चिंतित,कोई चिंतन क्या करेंगा
आग की है तपन जब तन को तपाती,
हाथ जलते, हवन कोई क्या करेगा
मूर्तियां परसाद जो खाने लगे तो,
चढ़ा व्यंजन,कोई पूजन ,क्या करेगा
पास ना धन और यदि ना कोई साधन ,
तीर्थ में जा ,कोई वंदन क्या करेगा
गंगा में डुबकी लगा कर पाप धुलते ,
पुण्य और सत्कर्म कोई क्या करेगा
आजकल के गुरु,गुरुघंटाल है सब,
कोई निज सर्वस्व अर्पण क्या करेगा
हाथ में माला ,सुमरनी , पढ़े गीता,
मगर चंचल ,भटकता मन ,क्या करेगा
इधर जाऊं,उधर जाऊं,क्या करूं मै ,
उलझनों में फंसा जीवन,क्या करेगा
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
No comments:
Post a Comment