हे शिव शंकर!
श्रद्धानत भक्तों की भारी भीड़ देख कर,
आप इतने द्रवीभूत हो गए,
कि आपका दिल बादल सा फट पड़ा
आपने तो अपनी जटाओं मे ,
स्वर्ग से अवतरित होती गंगा के वेग को,
वहन कर लिया था ,
पर हम मे इतना सामर्थ्य कहाँ,
जो आपकी भावनाओं के वेग को झेल सकें,
आपने बरसने के पहले ये तो सोचा होता
भस्मासुर कि तरह वरदान देकर ,
कितनों को भस्म कर दिया
मंद मंद बहनेवाली मंदाकिनी को,
वेगवती बना दिया
अपनी ही मूर्ती को ,गंगा मे बहा दिया
हे गंगाधर !
आपने ये क्या किया ?
मदन मोहन बाहेती'घोटू '
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