स्वर
हर उमंग में स्वर होता है
हर तरंग में स्वर होता है
उड़ पतंग ऊपर जाती है
बीच हवा में इठलाती है
आसमान में चढ़ी हुई है
पर डोरी से बंधी हुई है
डोर थाम देखो तुम कुछ क्षण
उंगली पर तुम उसकी थिरकन
कर महसूस ,जान पाओगे ,
हर पतंग में स्वर होता है
जब आती यौवन की बेला
ये मन रह ना पाए अकेला
प्यार पनपता है जीवन में
कोई बस जाता है मन में
जीवन में छा जाते रंग है
और मन में उठती तरंग है
प्रीत किसी से कर के देखो,
प्रियतम संग में ,स्वर होता है
छोटी ,लम्बी लोह सलाखें
अगर ढंग से रखो सजाके
या फिर लेकर सात कटोरी
पानी से भर भर कर थोड़ी
अगर बजाओगे ढंग से तुम
उसमे से निकलेगी सरगम
लोहे में,जल में, बसते स्वर,
जलतरंग में स्वर होता है
नन्ही जूही,श्वेत चमेली
पुष्पों की खुशबू अलबेली
मस्त मोगरा,खिलता चम्पा
रात महकती ,रजनीगन्धा
और गुलाब की खुशबू मनहर
मन में देती है तरंग भर
किसी भ्रमर के दिल से पूछो ,
हर सुगंध में स्वर होता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
No comments:
Post a Comment