सागर तीरे
समुंदर के किनारे ,निर्वसन,लेटी धूप मे
लालिमा पर कालिमा को ला रही निज रूप मे
सूर्य की ऊर्जा तुम्हारे ,बदन मे छा जाएगी
रजत तन पर ताम्र आभा ,सुहानी आ जाएगी
चोटियाँ उत्तंग शिखरों की सुहानी,मदभरी
देख दीवाने हुये हम,मची दिल मे खलबली
रजत रज पर ,देख बिखरी,रूप रस की बानगी
हो गया पागल बहुत मन,छा गई दीवानगी
समुंदर से अधिक ऊंची ,उछालें ,मन भर रहा
रूप का मधु रस पिये हम,हृदय बरबस कर रहा
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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