नेताओं मे खोजते ईमान हो,
कर रहे कोशिश क्यों बेकार मे
कितना ही ढूंढो .नहीं मिल पाएंगे,
तुम्हें मीठे करेले बाज़ार मे
जो भी दिखता हकीकत होता नहीं,
फर्क है तस्वीर मे और असल मे,
राख़ की आती नज़र है परत पर,
आग ही तुम पाओगे अंगार मे
बेईमानी से भरी इस रेत मे,
हो गए गुम,चंद दाने शकर के,
लाख छानो,तुम्हें मिल ना पाएंगे ,
व्यर्थ कोशिश जाएगी ,हर बार मे
हसीनों और नेता मे अंतर यही,
नेता की 'हाँ 'का भरोसा कुछ नहीं,
और हसीनों की है ये प्यारी अदा,
उनकी हामी,उनके है इंकार मे
हो समंदर चाहे कितना भी बड़ा,
उसमे खारा पानी ही होता सदा,
तपिश से बादल बनाओगे तभी,
बरसेगा वो,मीठा बन,बौछार मे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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