मज़ा बचपन का बुढापे में .......
बुढापे में भी बचपन को ,बुला हम क्यों नहीं सकते
जरा खुल कर ,हंसी ठट्ठा ,लगा हम क्यों नहीं सकते
बरसती फुहारों में भीग करके ,नाच कर 'घोटू'
मज़ा बारिश के मौसम का ,उठा हम क्यों नहीं सकते
बना कर नाव कागज़ की,सड़क की बहती नाली में,
तैरा कर ,भाग हम पीछे ,भला जा क्यों नहीं सकते
गरम से तपते मौसम में ,खड़े होकर के ठेले पर ,
बर्फ के गोले ,आइसक्रीम ,हम खा फिर क्यों नहीं सकते
मिला कर हाथ अपने नन्हे ,प्यारे पोते पोती से ,
हम उनके संग ,बच्चे फिर ,बन जाया क्यों नहीं सकते
रखा क्यों ओढ़ कर हमने ,लबादा ये बुजुर्गी का ,
वो बचपन के हसीं लम्हे ,हम लोटा क्यों नहीं सकते
जवानी के मज़े इस उम्र में ,तो लेना है मुश्किल,
मज़े बचपन के दोबारा ,उठा फिर क्यों नहीं सकते
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बुढापे में भी बचपन को ,बुला हम क्यों नहीं सकते
जरा खुल कर ,हंसी ठट्ठा ,लगा हम क्यों नहीं सकते
बरसती फुहारों में भीग करके ,नाच कर 'घोटू'
मज़ा बारिश के मौसम का ,उठा हम क्यों नहीं सकते
बना कर नाव कागज़ की,सड़क की बहती नाली में,
तैरा कर ,भाग हम पीछे ,भला जा क्यों नहीं सकते
गरम से तपते मौसम में ,खड़े होकर के ठेले पर ,
बर्फ के गोले ,आइसक्रीम ,हम खा फिर क्यों नहीं सकते
मिला कर हाथ अपने नन्हे ,प्यारे पोते पोती से ,
हम उनके संग ,बच्चे फिर ,बन जाया क्यों नहीं सकते
रखा क्यों ओढ़ कर हमने ,लबादा ये बुजुर्गी का ,
वो बचपन के हसीं लम्हे ,हम लोटा क्यों नहीं सकते
जवानी के मज़े इस उम्र में ,तो लेना है मुश्किल,
मज़े बचपन के दोबारा ,उठा फिर क्यों नहीं सकते
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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