बिठानी पड़ती गोटी है
आजकल हर जगह कुछ इस तरह का हो रहा कल्चर ,
काम कोई हो करवाना ,बिठानी पड़ती गोटी है
जगह जो हो अगर छोटी,तो लगती है रकम छोटी ,
बड़ी जो हो जगह तो फिर ,वहां कीमत भी मोटी है
यहाँ नंगे है सब अन्दर ,ढका है आवरण ऊपर ,
कहीं पर सूट ,साड़ी है, कहीं केवल लंगोटी है
भले ही आदमी बाहर से हो कितना बड़ा दिखता ,
मगर देखा हकीकत में कि होती सोच छोटी है
अंगूठे छाप सैकड़ों ही,खेलते है करोड़ों में,
कोई पढ़ लिख के मुश्किल से ,जुटा पाता दो रोटी है
ये सारा खेल किस्मत का,लिखा जो ऊपर वाले ने,
किसी का भाग्य अच्छा है,कोई तकदीर खोटी है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
आजकल हर जगह कुछ इस तरह का हो रहा कल्चर ,
काम कोई हो करवाना ,बिठानी पड़ती गोटी है
जगह जो हो अगर छोटी,तो लगती है रकम छोटी ,
बड़ी जो हो जगह तो फिर ,वहां कीमत भी मोटी है
यहाँ नंगे है सब अन्दर ,ढका है आवरण ऊपर ,
कहीं पर सूट ,साड़ी है, कहीं केवल लंगोटी है
भले ही आदमी बाहर से हो कितना बड़ा दिखता ,
मगर देखा हकीकत में कि होती सोच छोटी है
अंगूठे छाप सैकड़ों ही,खेलते है करोड़ों में,
कोई पढ़ लिख के मुश्किल से ,जुटा पाता दो रोटी है
ये सारा खेल किस्मत का,लिखा जो ऊपर वाले ने,
किसी का भाग्य अच्छा है,कोई तकदीर खोटी है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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