प्रार्थना
हे प्रभु!मुझे रहने के लिए ,
बस इतनी जगह चाहिए ,
कि हाथ पैर फैला सकूं
मुझे सोने के लिए,
बस इतनी जगह चाहिए ,
कि करवट बदल सकूं
इतनी खुली जगह हो ,
कि जब तक जियूं ,
खुल कर सांस ले सकूं
इतनी कमाई हो ,
कि दो वक़्त दाल रोटी खा सकूं
इतना समय दो ,
कि तेरे गुण गा सकूं
मेरी आपसे बस इतनी सी ही विनती है
क्योंकि मुझे मालूम है ,
राख की एक ढेरी बन,
गंगा की लहरों में विलीन होना ही,
मेरी नियती है
मदन मोहन बहेती'घोटू'
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