आशा-निराशा
भरी बारिश में उनके घर
गए हम आस ये ले कर
मज़ा बारिश का आयेगा
पकोड़े जा के खायेंगे
मगर जब हम वहां पहुंचे
वहां थे चल रहे रोज़े
नहीं सोचा था ये दिन भर ,
कि हम कुछ खा न पायेंगे
आदमी चाहता है कुछ
मगर होता है उल्टा कुछ
कि किस्मत की पहेली ये,
कभी सुलझा न पायेंगे
चबा सकते थे जब खाना
नहीं था पास में खाना
मिला खाना गिरे सब दांत ,
अब कैसे चबायेंगे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
भरी बारिश में उनके घर
गए हम आस ये ले कर
मज़ा बारिश का आयेगा
पकोड़े जा के खायेंगे
मगर जब हम वहां पहुंचे
वहां थे चल रहे रोज़े
नहीं सोचा था ये दिन भर ,
कि हम कुछ खा न पायेंगे
आदमी चाहता है कुछ
मगर होता है उल्टा कुछ
कि किस्मत की पहेली ये,
कभी सुलझा न पायेंगे
चबा सकते थे जब खाना
नहीं था पास में खाना
मिला खाना गिरे सब दांत ,
अब कैसे चबायेंगे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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