Thursday, September 5, 2013

हमारा धर्म-हमारे संस्कार

            हमारी संस्कृती -हमारे संस्कार
संस्कृती ,संस्कारों को जन्म देती है
और संस्कार ,संस्कृती को ज़िंदा रखते है
जो हमें कुछ देता है ,उसे हम देवता कहते है
हम जब भी गुजरते है ,किसी मंदिर,मस्जिद ,
या  किसी अन्य  धार्मिक स्थल के आगे से ,
सर नमाते  है
क्योंकि हमारे संस्कार ,हमें ,
सभी धर्मो का आदर करना सिखलाते है
बचपन से ही हमारे मन में भर दी जाती,
यह आस्था और विश्वास है
कि हर चर अचर में,इश्वर का वास है
भगवान ने भी जब अवतार लिया
तो सबसे पहले जलचर मत्स्य याने मछली ,
और फिर  कश्यप याने कछुवे का रूप लिया
फिर वराह बन प्रकटे ,पशु रूप धर
फिर नरसिंह बने,याने आधे पशु ,आधे नर
गणेश जी ,जिनकी हर शुभ  कार्य में,
पहले पूजा की जाती है
नीचे से नर है,ऊपर से हाथी है
हम आज भी गाय को गौ माता कहते है
और वानर रुपी हनुमानजी का
 पूजन करते रहते है
अरे पशु क्या ,हम तो वृक्ष और पौधों में भी ,
करते है भगवान का दर्शन
इसीलिए करते है ,वट,पीपल,
आंवला और तुलसी का पूजन
हम पर्वतों को भी देवता स्वरूप मानते है ,
कैलाश पर्वत हो या गोवर्धन
पत्थर की पिंडी या मूर्ती को भी ,
देव स्वरूप मान कर करते है आराधन
पूजते है सरोवर
अमृतसर हो या पुष्कर
नदियों को  देवी का रूप मान कर ,
स्नान, पूजा, ध्यान करते रहते है
गंगा को गंगा मैया और,
 यमुना को यमुना मैया कहते है
नाग को भी देवता मान कर दूध पिलाते है
कितने ही पशु पक्षियों को ,
देवी देवता का वाहन बतला कर ,
उनकी महिमा बढाते है
प्रकृति की हर कृति का करते सत्कार है
ये हमारी संस्कृती  है,हमारे संस्कार है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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