Friday, December 27, 2013

दो छोटी कवितायें-पत्नीजी को समर्पित

      दो छोटी कवितायें-पत्नीजी को समर्पित
                             १
               भगवान का  प्रसाद
 
मिलता प्रसाद प्रभू का, हम हाथ में लिये
हम खा लेते चुपचाप,बिना चूं चपड़ किये
भगवान का परसाद,हमेशा ही स्वाद है
अमृत छुपा है उसमे और आशीर्वाद  है
भगवान के परसाद सी होती है बीबियाँ
जिसको भी जैसी मिल गयी,वैसा ग्रहण किया  
उसमे न कभी भी कोई तुम नुक्स निकालो
श्रद्धा से या मजबूरी से,जैसी हो ,निभालो
                       २
          जलने लगी है रोटियां
वैसे ही बड़ी प्यारी सी ,बीबी हमें मिली
दिन दूनी रात चौगुनी ,खूबसूरती खिली
सब कुढ़ने लगे ,हो गयी सुन्दर वो इस कदर
जलने लगी है रोटियां भी उनको देख कर
जादू ये उनके हुस्न का ,करता कमाल है
नित दूध की पतीली में ,आता उबाल है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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