संक्रांति या क्रांति
सूर्य ने राशि बदल ली,आ गयी संक्रांति है
देश की इस राजनीति में भी आयी क्रांति है
नाम पर जनतंत्र के जो राज पुश्तेनी चला ,
हो रही अब धीरे धीरे ,दूर सारी भ्रान्ति है
कर रहा महसूस खुद को,आदमी था जो ठगा
ऋतू ने अंगड़ाई ली है ,बदलने मौसम लगा
हर तरफ फैली हुई आयी नज़र जब गंदगी ,
हाथ में झाड़ू उठा ,बुहारने उसको लगा
बचपने से चाय जो बेचा करे था रेल में
आज खुल कर आ गया वो राजनीति खेल में
देश को बंटने न देंगे ,अब धर्म के नाम पे,
भ्रष्टाचारी और लुटेरे ,जायेंगे अब जेल में
जब से अपनी शक्ति का ,उसको हुआ अहसास है
आदमी जो आम था ,अब लगा होने ख़ास है
क्रांति की ये लहर निश्चित ,अपना रंग दिखलायेगी ,
हमारे भी दिन फिरेंगे ,हम को ये विश्वास है
सूर्य था जो दक्षिणायण ,उत्तरायण आयेगा
भीष्म सा षर-बिद्ध ,मेरा देश मुक्ती पायेगा
ध्वंस सारे दुशासन सुत ,युद्ध में हो जायेंगे ,
आस है ,विश्वास है,अब तो सुशासन आयेगा
दे रहा है बदलता मौसम यही पैगाम है
खूब लूटा देश,उनको ,भुगतना अंजाम है
अब न कठपुतली ,मुखौटे ,चलायेगे देश को,
शीर्ष पर सत्ता के होगा ,आदमी जो आम है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
सूर्य ने राशि बदल ली,आ गयी संक्रांति है
देश की इस राजनीति में भी आयी क्रांति है
नाम पर जनतंत्र के जो राज पुश्तेनी चला ,
हो रही अब धीरे धीरे ,दूर सारी भ्रान्ति है
कर रहा महसूस खुद को,आदमी था जो ठगा
ऋतू ने अंगड़ाई ली है ,बदलने मौसम लगा
हर तरफ फैली हुई आयी नज़र जब गंदगी ,
हाथ में झाड़ू उठा ,बुहारने उसको लगा
बचपने से चाय जो बेचा करे था रेल में
आज खुल कर आ गया वो राजनीति खेल में
देश को बंटने न देंगे ,अब धर्म के नाम पे,
भ्रष्टाचारी और लुटेरे ,जायेंगे अब जेल में
जब से अपनी शक्ति का ,उसको हुआ अहसास है
आदमी जो आम था ,अब लगा होने ख़ास है
क्रांति की ये लहर निश्चित ,अपना रंग दिखलायेगी ,
हमारे भी दिन फिरेंगे ,हम को ये विश्वास है
सूर्य था जो दक्षिणायण ,उत्तरायण आयेगा
भीष्म सा षर-बिद्ध ,मेरा देश मुक्ती पायेगा
ध्वंस सारे दुशासन सुत ,युद्ध में हो जायेंगे ,
आस है ,विश्वास है,अब तो सुशासन आयेगा
दे रहा है बदलता मौसम यही पैगाम है
खूब लूटा देश,उनको ,भुगतना अंजाम है
अब न कठपुतली ,मुखौटे ,चलायेगे देश को,
शीर्ष पर सत्ता के होगा ,आदमी जो आम है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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