देखो हम क्या क्या करते है
हम जो करते है पाप,पुण्य,सन्दर्भ बदलते रहते है
अपनी सुविधा के अनुसार,आदर्श बदलते रहते है
हम पूजा करते नारी को ,बचपन में होती माँ स्वरुप
फिर शादी कर पूजा करते है नारी को ,पत्नी स्वरूप
उगते सूरज को अर्घ्य चढ़ा,तपते सूरज से है डरते
फिर कब हो अस्त ,आये रजनी ,बस यही प्रतीक्षा है करते
सर्दी में गर्मी की इच्छा ,गर्मी में वर्षा की चाहत
बारिश में,कब बरसात थमे,बस यही प्रतीक्षा करते सब
गर्मी में पंखे और कूलर के बिन कुछ काम नहीं चलता ,
सर्दी आते ही हम उनको ,चुपचाप तिरस्कृत करते है
अपनी सुविधा के अनुसार,आदर्श बदलते रहते है
करते प्रणाम उस सत्ता को ,जिससे सधता है कुछ मतलब
जिससे कोई भी काम न हो,ठोकर मारा करते है सब
दुःख और पीड़ा में जा मंदिर,पूजन और अर्चन करते है
पर सुख आते है तो केवल ,परसाद चढ़ाया करते है
ये मन पागल है ,चंचल है ,टिकता ना एक जगह पर है
चाहत उसकी पूरी करने ,हम भटका करते दर दर है
तुम अपना आत्म विवेचन तो,सच्चे मन से कर के देखो,
अपने मतलब की सिद्धी हित,हम जाने क्या क्या करते है
अपनी सुविधा के अनुसार,आदर्श बदलते रहते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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