घर की याद
जब काफी दिन एक जगह पर ,
रह कर मन है उचटा करता
परिवर्तन या कहो पर्यटन ,
करने को मन भटका करता
रोज रोज की दिनचर्या से,
थोड़े दिन की छुट्टी लेकर
ख़ुशी ख़ुशी और बड़े चाव से ,
कहीं घूमने जाते बाहर
पहले तो दो तीन दिवस तक,
अच्छा लगता है परिवर्तन
नयी जगह और नए लोग सब ,
नयी सभ्यता ,भाषा नूतन
कमरा नया ,नित नया बिस्तर ,
नया नया नित खान पान है
रोज घूमना ,चलना फिरना,
चढ़ जाती तन पर थकान है
दिन भर ये देखो ,वो देखो,
बड़ी दूरियां ,चलना दिन भर
कहीं खंडहर,कहीं महल है ,
झरने कहीं,कहीं पर सागर
मन प्रसन्न पर तन थक जाता ,
सैर करो जब दुनिया भर की
अच्छा तो लगता है लेकिन,
याद सताने लगती घर की
और ऊबने लगता मन है ,
रोज रोज होटल मे खाते
याद हमें आने लगते है ,
घरकी रोटी ,दाल ,परांठे
परिवर्तन अच्छा होता पर ,
जिस जीवन के हम है आदी
हमें वही अच्छा लगता है ,
और घर की है याद सताती
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जब काफी दिन एक जगह पर ,
रह कर मन है उचटा करता
परिवर्तन या कहो पर्यटन ,
करने को मन भटका करता
रोज रोज की दिनचर्या से,
थोड़े दिन की छुट्टी लेकर
ख़ुशी ख़ुशी और बड़े चाव से ,
कहीं घूमने जाते बाहर
पहले तो दो तीन दिवस तक,
अच्छा लगता है परिवर्तन
नयी जगह और नए लोग सब ,
नयी सभ्यता ,भाषा नूतन
कमरा नया ,नित नया बिस्तर ,
नया नया नित खान पान है
रोज घूमना ,चलना फिरना,
चढ़ जाती तन पर थकान है
दिन भर ये देखो ,वो देखो,
बड़ी दूरियां ,चलना दिन भर
कहीं खंडहर,कहीं महल है ,
झरने कहीं,कहीं पर सागर
मन प्रसन्न पर तन थक जाता ,
सैर करो जब दुनिया भर की
अच्छा तो लगता है लेकिन,
याद सताने लगती घर की
और ऊबने लगता मन है ,
रोज रोज होटल मे खाते
याद हमें आने लगते है ,
घरकी रोटी ,दाल ,परांठे
परिवर्तन अच्छा होता पर ,
जिस जीवन के हम है आदी
हमें वही अच्छा लगता है ,
और घर की है याद सताती
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
No comments:
Post a Comment