माँ बाप के प्रति
जिन हाथों ने ऊँगली पकड़ सिखाया था ,
उठना हमको और एक एक पग रख चलना
आज बुढ़ापे में है वो कमजोर हुए ,
कमर झुक गयी और हुआ मुश्किल चलना
तो क्या आज हमारा ये कर्तव्य नहीं,
उनकी उंगली थामे ,उन्हें सहारा दें
वो प्यारे माँ बाप हमारे बूढ़े है ,
पूरी श्रद्धा से ,जी भर प्यार हमारा दें
हम जो भी है,उनकी आज बदौलत है ,
अब भी रखते है फ़िक्र,रहा करते बेकल
हमने जो फल फूल, सफलता पायी है,
यह सब उनके आशीर्वादों का ही फल
बचपन में जो लिखना हमें सिखाते है ,
अ ,आ ,इ ,ईं ,अक्षर ज्ञान कराते है
देखो कैसी है यह विडंबना जीवन की,
हम पढ़ लिख कर ,उन्हें गंवार बताते है
जीवन में जब भी हमने ठोकर खाई ,
गिरे, उन्होंने पकड़ा हाथ, उठाया है
झाड़ी धूल वस्त्र से , हमें प्रेरणा दी ,
और हमारे घावों को सहलाया है
आज उमर के साथ,हाथ उनके कांपे ,
वो बूढ़े है ,वो निर्बल है ,अक्षम है
पर अनुभव की भरी पोटली उनके संग ,
उनका साया ,सर पर है, ये क्या कम है
उनकी पूजा करो,करो उनकी सेवा ,
मातृ पितृ ऋण ,तुमको अगर चुकाना हो
उनके आशीर्वादों से भरलो झोली ,
पता नहीं कल का,कल वो हो भी या ना हो
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
जिन हाथों ने ऊँगली पकड़ सिखाया था ,
उठना हमको और एक एक पग रख चलना
आज बुढ़ापे में है वो कमजोर हुए ,
कमर झुक गयी और हुआ मुश्किल चलना
तो क्या आज हमारा ये कर्तव्य नहीं,
उनकी उंगली थामे ,उन्हें सहारा दें
वो प्यारे माँ बाप हमारे बूढ़े है ,
पूरी श्रद्धा से ,जी भर प्यार हमारा दें
हम जो भी है,उनकी आज बदौलत है ,
अब भी रखते है फ़िक्र,रहा करते बेकल
हमने जो फल फूल, सफलता पायी है,
यह सब उनके आशीर्वादों का ही फल
बचपन में जो लिखना हमें सिखाते है ,
अ ,आ ,इ ,ईं ,अक्षर ज्ञान कराते है
देखो कैसी है यह विडंबना जीवन की,
हम पढ़ लिख कर ,उन्हें गंवार बताते है
जीवन में जब भी हमने ठोकर खाई ,
गिरे, उन्होंने पकड़ा हाथ, उठाया है
झाड़ी धूल वस्त्र से , हमें प्रेरणा दी ,
और हमारे घावों को सहलाया है
आज उमर के साथ,हाथ उनके कांपे ,
वो बूढ़े है ,वो निर्बल है ,अक्षम है
पर अनुभव की भरी पोटली उनके संग ,
उनका साया ,सर पर है, ये क्या कम है
उनकी पूजा करो,करो उनकी सेवा ,
मातृ पितृ ऋण ,तुमको अगर चुकाना हो
उनके आशीर्वादों से भरलो झोली ,
पता नहीं कल का,कल वो हो भी या ना हो
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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