फादर'स डे पर
पिताजी- एक चिंतन
बचपन में ,जब भी गलती होती थी,हर बार
मुझे सुननी पड़ती थी ,पिताजी की फटकार
और मैं गुस्से में,दुखी और नाराज़ होकर
निकल जाया करता था ,छोड़ घर के बाहर
और देर रात,गुस्साया सा ,जब लौटता था
माँ प्रतीक्षा कर रही होगी,मुझे होता पता था
पिताजी की नाराजगी,निकालता था खाने पर
पर जब शांत होता था ,माँ के समझाने पर
तब पता लगता था,पिताजी ने नहीं किया भोजन
तब बड़ा दुखी और खिन्न होता था,मेरा मन
सोचता था,माँ और पिताजी ,दोनों करते है प्यार
तो क्यों इतना अलग होता है ,दोनों का व्यवहार
दोनों के आचरण में क्यों ,इतनी विषमता है
एक पुचकारता है और दूसरा फटकारता है
प्यार के तरीके में उनके क्यों है ये अन्तर
किन्तु समझ में मेरे ,अब आया है जाकर
माँ तो हमेशा ही ,दुलारने के लिए होती है
पर पिताजी की डाट,सुधारने के लिए होती है
जीवन पथ पर ,नहीं मिलता ,हमेशा,हर बार
माँ के जैसी ममता या प्यार भरा व्यवहार
कितने ही संघर्षों से ,हमें गुजरना पड़ता है
अलग अलग लोगों से ,दो चार करना पड़ता है
रोज रोज नयी मुसीबत ,हर बार मिलती है
कभी गाली,कभी डाट ,कभी फटकार मिलती ह
आदमी ,बचपन से यदि प्यार का आदी हो जाएगा
तो इन सारी मुसीबतों को वो कैसे झेल पायेगा
पिताजी की डाट भी एक तरीका है,समझाने का
हमें दृढ़,मजबूत और अनुशासित बनाने का
माँ की ज्यादा ममता भी बच्चे को बिगाड़ देती है
और पिताजी की डाट,जीवन को संवार देती है
इसीलिये पिताजी थोड़ा कठोर व्यवहार करते है
अगर डाटते हैं,समझ लो,बहुत प्यार करते है
नारियल से सख्त बाहर,अंदर मुलायम होते
ये बात समझ तब आती ,जब पिता हम होते
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पिताजी- एक चिंतन
बचपन में ,जब भी गलती होती थी,हर बार
मुझे सुननी पड़ती थी ,पिताजी की फटकार
और मैं गुस्से में,दुखी और नाराज़ होकर
निकल जाया करता था ,छोड़ घर के बाहर
और देर रात,गुस्साया सा ,जब लौटता था
माँ प्रतीक्षा कर रही होगी,मुझे होता पता था
पिताजी की नाराजगी,निकालता था खाने पर
पर जब शांत होता था ,माँ के समझाने पर
तब पता लगता था,पिताजी ने नहीं किया भोजन
तब बड़ा दुखी और खिन्न होता था,मेरा मन
सोचता था,माँ और पिताजी ,दोनों करते है प्यार
तो क्यों इतना अलग होता है ,दोनों का व्यवहार
दोनों के आचरण में क्यों ,इतनी विषमता है
एक पुचकारता है और दूसरा फटकारता है
प्यार के तरीके में उनके क्यों है ये अन्तर
किन्तु समझ में मेरे ,अब आया है जाकर
माँ तो हमेशा ही ,दुलारने के लिए होती है
पर पिताजी की डाट,सुधारने के लिए होती है
जीवन पथ पर ,नहीं मिलता ,हमेशा,हर बार
माँ के जैसी ममता या प्यार भरा व्यवहार
कितने ही संघर्षों से ,हमें गुजरना पड़ता है
अलग अलग लोगों से ,दो चार करना पड़ता है
रोज रोज नयी मुसीबत ,हर बार मिलती है
कभी गाली,कभी डाट ,कभी फटकार मिलती ह
आदमी ,बचपन से यदि प्यार का आदी हो जाएगा
तो इन सारी मुसीबतों को वो कैसे झेल पायेगा
पिताजी की डाट भी एक तरीका है,समझाने का
हमें दृढ़,मजबूत और अनुशासित बनाने का
माँ की ज्यादा ममता भी बच्चे को बिगाड़ देती है
और पिताजी की डाट,जीवन को संवार देती है
इसीलिये पिताजी थोड़ा कठोर व्यवहार करते है
अगर डाटते हैं,समझ लो,बहुत प्यार करते है
नारियल से सख्त बाहर,अंदर मुलायम होते
ये बात समझ तब आती ,जब पिता हम होते
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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