संवाद -रेल की पटरियों का
उधर तुम अकेली,इधर मैं अकेली,
पडी हम ,यूं ही जंग है लगती जाती
अगर जिंदगी का ,लड़े जंग हम तुम,
मिले एक से एक,ग्यारह कहाती
संग संग रहे पर ,उचित दूरियां हो ,
पकड़ हो जमीं से,बहुत काम आती
तभी रेल की पटरियां बन के बिछती,
कई ट्रेन हम पर,तभी दौड़ पाती
घोटू
उधर तुम अकेली,इधर मैं अकेली,
पडी हम ,यूं ही जंग है लगती जाती
अगर जिंदगी का ,लड़े जंग हम तुम,
मिले एक से एक,ग्यारह कहाती
संग संग रहे पर ,उचित दूरियां हो ,
पकड़ हो जमीं से,बहुत काम आती
तभी रेल की पटरियां बन के बिछती,
कई ट्रेन हम पर,तभी दौड़ पाती
घोटू
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