उम्र बढ़ी तो क्या क्या बदला
गठीली थी जो जंघाएँ ,पड़ गयी गांठ अब उनमे ,
कसा था जिस्म तुम्हारा ,हुआ अब गुदगुदा सा है
कमर चोवीस इंची थी ,हुई चालीस इंची अब,
पेट पर पड़ गए है सल, हुलिया ही जुदा सा है
लचकती थी कमर तुम्हारी ,चलती थी अदा से जब ,
आजकल चलती हो तुम तो,बदन सारा लचकता है
हिरन जैसी कुलाछों में,आयी गजराज की मस्ती,
दूज का चाँद था जो ,हो गया ,अब वो पूनम का है
भले ही आगया है फर्क काफी तन में तुम्हारे ,
तुम्हारे मन का भोलापन ,वही प्यारा सा है निर्मल
आज भी प्यार से जब देखती हो,जुल्मी नज़रों से ,
दीवाना सा मैं हो जाता,मुझे कर देती तुम पागल
कनक की जो छड़ी सा था ,हुआ है तन बदन दूना ,
तुम्हारा प्यार मुझसे हो गया है चौगुना लेकिन
हो गए इस तरह आश्रित है हम एक दूजे पर ,
न रह सकती तुम मेरे बिन,न मैं रहता तुम्हारे बिन
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
गठीली थी जो जंघाएँ ,पड़ गयी गांठ अब उनमे ,
कसा था जिस्म तुम्हारा ,हुआ अब गुदगुदा सा है
कमर चोवीस इंची थी ,हुई चालीस इंची अब,
पेट पर पड़ गए है सल, हुलिया ही जुदा सा है
लचकती थी कमर तुम्हारी ,चलती थी अदा से जब ,
आजकल चलती हो तुम तो,बदन सारा लचकता है
हिरन जैसी कुलाछों में,आयी गजराज की मस्ती,
दूज का चाँद था जो ,हो गया ,अब वो पूनम का है
भले ही आगया है फर्क काफी तन में तुम्हारे ,
तुम्हारे मन का भोलापन ,वही प्यारा सा है निर्मल
आज भी प्यार से जब देखती हो,जुल्मी नज़रों से ,
दीवाना सा मैं हो जाता,मुझे कर देती तुम पागल
कनक की जो छड़ी सा था ,हुआ है तन बदन दूना ,
तुम्हारा प्यार मुझसे हो गया है चौगुना लेकिन
हो गए इस तरह आश्रित है हम एक दूजे पर ,
न रह सकती तुम मेरे बिन,न मैं रहता तुम्हारे बिन
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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