Sunday, July 13, 2014

मृतसागर

         मृतसागर

आकुल,व्याकुल,कल कल करती ,कितनी नदियां ,मिलने आती
छोड़ सभी खारापन अपना ,बादल  बनती  और उड़ जाती
मैं चुपचाप,मौन बेचारा ,दिन दिन होता जाता   खारा
सारी पीड़ाये लहरों सी,ढूंढा करती ,कोई किनारा
मुझसे विमुख सभी जलचर है,इतना एकाकीपन सहता
डूब न जाए कोई मुझ में, इतना पितृ भाव है रहता
मन का भारीपन गहराता,घनीभूत होता जाता मैं
सभी भावना,मृत हो जाती,और मृतसागर कहलाता मैं

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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