आम या ख़ास
दशहरी हो या फिर लंगड़ा ,हो चौंसा या कि अल्फांसो,
आम ,कोई न आम होता ,हमेशा ख़ास होता है
माशुका की तरह उनका ,स्वाद जब मुंह में लग जाता ,
लबों पर उसकी लज्जत का,गजब अहसास होता है
ज़रा सा मुंह में लेकर के ,पियो जब घूँट तुम रस की,
हलक में जा रहा अमृत ,यही आभास होता है
गुट्ठिया चूस कर देखो , रसीली,रसभरी होती , ,
हरेक रेशे में रस ही रस , बड़ा मिठास होता है
घोटू
दशहरी हो या फिर लंगड़ा ,हो चौंसा या कि अल्फांसो,
आम ,कोई न आम होता ,हमेशा ख़ास होता है
माशुका की तरह उनका ,स्वाद जब मुंह में लग जाता ,
लबों पर उसकी लज्जत का,गजब अहसास होता है
ज़रा सा मुंह में लेकर के ,पियो जब घूँट तुम रस की,
हलक में जा रहा अमृत ,यही आभास होता है
गुट्ठिया चूस कर देखो , रसीली,रसभरी होती , ,
हरेक रेशे में रस ही रस , बड़ा मिठास होता है
घोटू
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